राल (शाल के वृक्ष का गोंद) के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

परिचय (Introduction)

 

शालरस, शालवेष्ट, सुरधूप और शीतल आदि राल के कई नाम हैं।

 

गुण (Property)

 

यह शाल वृक्ष का गोंद है। यह तीखा, ठंडा (शीतल), रस से भरा हुआ, खून के रोग, कुष्ट (कोढ़) तथा जलन, भग्नदाह और अतिसार (दस्त) को खत्म करता है।

 

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

 

खांसी :

 

लगभग आधे से 1 ग्राम राल को छोटी पीपल, अड़ूसा, शहद और घी के साथ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खांसी के रोग में लाभ होता है।

लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग राल रोगी को सेवन कराया जाए तो कफ (बलगम) आसानी से निकल जाता है और खांसी आना भी बंद हो जाती है।

आँव (आँव अतिसार) :

 

राल की लकड़ी को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर चीनी (शक्कर) के साथ मिलकार प्रयोग करने से आँव का दस्त समाप्त हो जाता है।

 

दस्त के लिए :

 

4 ग्राम सफेद राल और मिश्री 8 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर 7 ग्राम को खुराक के रूप में दही के साथ मिलाकर सेवन करने से दस्त का आना समाप्त हो जाता है।

राल को आधे ग्राम से 1 ग्राम तक लेकर शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से लाभ होता है।

राल 6 ग्राम, फिटकिरी 6 ग्राम और संजरापता 6 ग्राम को लेकर बारीक चूर्ण बनाकर लगभग 1 ग्राम मिश्री को डालकर रख दें, फिर इसे चौलाई के रस में 125 मिलीलीटर रस और नींबू के साथ पीने से खूनी अतिसार (दस्त) और आँव का आना बंद हो जाता है।

कमरदर्द :

 

राल को ब्राण्डी (शराब) के साथ या अण्डे की सफेदी के साथ कमर में लगाकर मालिश करने से कमर दर्द में लाभ होता है।

 

बवासीर (अर्श) :

 

60 ग्राम पीली राल लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। रोज सुबह इस 7 ग्राम चूर्ण को 125 ग्राम दही में मिलाकर खायें। यह खूनी बवासीर के साथ सभी प्रकार की बवासीर को ठीक करता है।

30 ग्राम राल को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर कपड़े से छान लें। रोजाना 6 ग्राम चूर्ण 100 ग्राम दही के साथ चीनी मिलाकर खाने से बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है।

प्रदर रोग :

 

1 ग्राम सफेद राल में 4 ग्राम चीनी मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ खाने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है।

 

वीर्य रोग :

 

राल को बारीक पीसकर 1-1 ग्राम सुबह-शाम पानी से लेने से शरीर में वीर्य की कमी दूर हो जाती है।

 

घाव (व्रण) :

 

4 ग्राम राल के चूर्ण को 40 मिलीलीटर नारियल के तेल में अच्छी तरह से मिलाकर व कपड़े से छानकर रखें। इसे जलने से हुए घाव पर लगाने से घाव जल्द ठीक हो जाता है।

 

फोड़ा :

 

राल का मलहम बनाकर फोड़े पर लगाने से बिना दर्द के फोड़ा फूट जाता है।

 

फीलपांव (गजचर्म) :

 

राल का मलहम बनाकर फीलपांव के फोड़े पर लगाने से फोड़े का दर्द दूर हो जाता है।

 

खाज-खुजली :

 

4 भाग राल, 4 भाग मोम, 4 भाग तिल का तेल और 3 भाग घी को गर्म करके मिला लें और उसका लेप बना लें। यह लेप लगाने से खाज-खुजली ठीक हो जाती है।

 

आग से जल जाने पर :

 

10 ग्राम सफेद राल को पीसकर 60 ग्राम नारियल के तेल में मिलाकर थोड़ी देर तक मिलाते रहें। जब दोनों मिलकर एक जैसे हो जायें तो इन्हें 100 बार पानी में धोकर लेप बना लें। इसको लगाने से जलन और दर्द मिट जाता है। इस लेप को बनाने के बाद पानी के घड़े के अन्दर ही रखें।

30 ग्राम सफेद राल को कपड़े में छानकर 250 मिलीलीटर तिल के तेल में थोड़ा-थोड़ा-सा डालकर चलाते रहें और उसमें थोड़ा-थोड़ा पानी भी डालते रहें। जब चलाते-चलाते राल सफेद हो जाये तो 6 ग्राम कपूर चूरा और 12 ग्राम पिसा हुआ कत्था डालकर मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से लाभ होता है।

शरीर को शक्तिशाली बनाना :

 

लगभग 10 ग्राम की मात्रा में राल के चूर्ण को फांककर ऊपर से लगभग 500 मिलीलीटर गर्म-गर्म दूध पीने से शरीर में ताकत आती है और उसके संभोग करने की क्षमता बढ़ती है।

 

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