शतावर के गुण और उससे होने वाले आयुर्वेदिक इलाज

 

परिचय (Introduction)

 

शतावर की बेल भारत में हर जगह पाई जाती है, लेकिन उत्तरी भारत में शतावर ज्यादा पैदा होता है। शतावर की बेल बाग-बगीचों, बंगलों में सौंदर्य वृद्धि हेतु भी लगाई जाती है। शतावर की बेल पेड़ का सहारा लेकर ऊपर बढ़ती है, जिसमें कई कांटे होते हैं। इसकी शाखा-प्रशाखाएं चारों ओर फैलकर इसे झाड़ीनुमा बना देती है। शतावर के कांटे 6 से 12 मिलीमीटर लम्बे, कुछ टेढ़े होते हैं। इसकी पत्तियां गुच्छों में एक साथ 4 से 6 इंच लम्बी नोकदार, छोटी व नलीदार होती है। शतावर के फूल मंजरियों पर छोटे-छोटे, सुगंधित, गुच्छों में 3 से 5 मिलीमीटर व्यास के लगते हैं। इसके एक साथ हजारों फूल लगने के कारण नवम्बर के महीनों में पूरी बेल सफेद नज़र आती है। शतावर के फल गोल, मटर के दाने जैसे पकने पर लाल रंग के लगते हैं, जिसमें 1-2 काले रंग के बीज निकलते हैं। जड़ फल के समान लम्बी गोल, उंगली की तरह मोटी सफेद, मटमैले, पीले रंग की सैकड़ों जड़ों में निकलती हैं। इन जड़ों को ही औषधि के रूप में इस्तेमाल करते हैं। शतावर का स्वाद फीका होता है।

 

गुण (Property)

 

शतावर बुद्धि के लिए उत्तम, पेट की जलन, भारी, रसायन, आंखों के लिए लाभदायक, वीर्यवर्धक, ठंडा, दूध को बढ़ाने वाली, बलवर्धक, दस्त तथा वातपित्त, खून की गन्दगी को साफ करना, तथा सूजन आदि को दूर करता है।

 

हानिकारक प्रभाव (Harmful effects)

 

यह सिर में दर्द पैदा करता है।

 

विभिन्न रोगों में उपचार (Treatment of various diseases)

 

जुकाम :

10 ग्राम शतावर पिसी हुई को पांच काली मिर्च के साथ मिलाकर पानी में घोटकर सुबह-शाम पिया जायें तो जुकाम ठीक हो जाता है।

 

वात रोग :

20-20 ग्राम शतावर और पीपर को पीस-छानकर 5-5 ग्राम सुबह दूध से लेने पर वात रोग ठीक हो जाता है।

 

नपुसंकता :

शतावर, असगंध, एला, कुलंजन और वंशलोचन का चूर्ण बनाकर रख लें। इसमें से 3 ग्राम चूर्ण में 6 ग्राम शक्कर मिलाकर खाने से और फिर ऊपर से दूध पीने से कुछ ही महीनों में नपुंसकता खत्म हो जाती है।

शतावर और असगन्ध के 4 ग्राम चूर्ण को दूध में उबाल कर पीने से नपुंसकता समाप्त हो जाती है।

शतावर को दूध में देर तक उबालकर मिश्री मिला लें और इस दूध को पीने से ही कुछ महीनों में नपुंसकता खत्म हो जाती है।

3 ग्राम शतावर का चूर्ण दूध में डालकर उबाल लें फिर इसमें मिश्री मिलाकर पीने से सहवास की कमजोरी दूर हो जाती है।

 

सिर का दर्द :

शतावर की ताजी मूल (जड़) को पीसकर व रस निकाल कर उसमें बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर उबाल लेना चाहिए। फिर इस तेल से सिर की मालिश करने से मस्तक का दर्द और आधे सिर का दर्द खत्म हो जाता है।

 

सूखी खांसी :

10 ग्राम शतावर, 10 ग्राम अडूसे के पत्ते और 10 ग्राम मिश्री को 150 मिलीलीटर पानी के साथ उबालकर दिन में 3 बार पीने से सूखी खांसी समाप्त हो जाती है।

शतावर, अड़ूसे के पत्ते और मिश्री को पानी में उबालकर पीने से सूखी खांसी मिट जाती है।

 

स्तनों का जमा दूध निकालना :

50-50 ग्राम शतावर, सौंफ, बिदारीकंद को पीसकर और छानकर 5 ग्राम दूध या पानी से लेने से महिलाओं की छाती का जमा हुआ दूध पिघलकर उतर जाता है।

 

प्रदर रोग :

150 ग्राम शतवारी को पीसकर और छानकर 20 ग्राम की मात्रा में, 200 मिलीलीटर दूध और 200 मिलीलीटर पानी के साथ मिलाकर उबाले आधा रह जाने पर इसमे खांड मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग मिट जाता है।

 

श्वेत प्रदर :

शतावर का चूर्ण बनाकर शहद के साथ सेवन करने से श्वेत प्रदर दूर हो जाता है।

 

योनि से खून का बहना:

20 ग्राम शतावर और गोखरू की जड़, 160 मिलीलीटर बकरी का दूध और 1 लीटर पानी को मिलाकर आग पर गर्म करें और थोड़ा बचने पर छानकर स्त्री को पिला दें इससे योनि से खून का बहना बंद हो जाता है।

 

वीर्य के रोग में :

शतावर रस या आंवला का रस अथवा गोखुरू का काढ़ा शहद में मिला कर पीने से वीर्य शुद्ध होता है।

शतावर, सफेद मूसली, असगन्ध, कौंच के बीज, गोखरू और आंवला को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह 3-3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम खाने से धातु (वीर्य) में वृद्धि होती है।

10 ग्राम से 20 ग्राम शतावर के चूर्ण को चीनी और दूध के साथ पेय बना कर सुबह-शाम पीने से धातु (वीर्य) का पतलापन दूर होता है और वीर्य गाढ़ा होता है।

गीली शतावर को चीरकर बीच के तिनके निकाल कर दूध के साथ पिसी मिश्री मिलाकर खाने से धातु में वृद्धि होती है।

 

गठिया रोग :

शतावर के तेल से रोजाना घुटनों पर मालिश करने से गठिया (घुटनो का दर्द) रोग ठीक हो जाता है।

 

नहरूआ :

नहरूआ के रोगी को शतावर की ठंडाई (ठंडी शरबत) बनाकर पीने से लाभ मिलता है।

 

अनिद्रा रोग :

शतावर की खीर में घी मिलाकर सेवन करने से अनिद्रा (नींद न आना) का रोग समाप्त हो जाता है।

 

रतौंधी :

शतावर के मुलायम पतों की सब्जी घी में बनाकर खाने से रतौंधी दूर हो जाती है।

 

वात खांसी :

शतावर के थोड़े गर्म काढ़े में 1 ग्राम पीपल का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से वातज कास और दर्द दूर हो जाता है।

 

श्वास मूर्छा :

1 ग्राम शतावर का चूर्ण, 1 ग्राम घी, 4 ग्राम दूध को उबालकर घी मे पकाकर बलानुसार पीने से मूर्च्छा (बेहोशी) ठीक होने के साथ अम्लपित, रक्त पित, वात और पित्त के विकार, श्वास (दमा) और तृष्णा (प्सास) आदि रोग खत्म हो जाते है।

 

स्त्री के दूध में वृद्धि :

10 ग्राम शतावर के चूर्ण की फंकी दूध के साथ लेने से स्त्री के स्तनों मे दूध की बढ़ोतरी होती है।

शतावर को गाय के दूध में पीस कर सेवन करने से स्त्री का दूध मीठा और पौष्टिक हो जाता है।

 

रक्तातिसार :

गीली शतावर को दूध के साथ पीसकर व छानकर दिन में 3-4 बार पीने से खूनी दस्त बंद हो जाते हैं।

 

मूत्रकृच्छ :

20 ग्राम गोखरू के पंचांग के साथ बराबर मात्रा में शतावर को 500 मिलीलीटर पानी में उबालकर, छानकर उसमे 10 ग्राम मिश्री और 2 चम्मच शहद मिलाकर रोगी को थोड़ा पिलाने से पेशाब में जलन और पेशाब की रूकावट खत्म हो जाती है।

 

बुखार :

6 मिलीलीटर शतावर की जड़ का रस बराबर मात्रा में गिलोय के रस तथा गुड़ के साथ दिन में 3 बार रोगी को देने से बुखार जल्दी उतर जाता है।

 

नपुंसकता :

10 ग्राम से 20 ग्राम शतावरी के चूर्ण को शक्कर मिले दूध में सुबह-शाम डालकर पीने से नपुंसकता दूर होती है और शरीर की कमजोरी भी दूर होती है।

 

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